वसंत पञ्चमी, श्रीपञ्चमी हिन्दु धर्म के एगो महत्त्वपूर्ण त्योहार

वसंत पञ्चमी या श्रीपञ्चमी हिन्दु धर्म के एगो महत्त्वपूर्ण त्योहार ह खास कर के विधार्थी लोग खातीर यी सबसे बड उत्सव हवे। कईयन देश में बडा हर्ष आ उल्लास के साथ मनावल जाला। एह दिने पियर वस्त्र धारण करे के प्रावधान बा। बसंत पञ्चमी के ऋषि पञ्चमी से उल्लेखित कईल बा। एहिसे पौराणिक शास्त्र में आ अनेकन ग्रंथ में भी अलग अलग ढंग से बसंत पञ्चमी के चित्रण कयील गयील बा।

प्राचीन भारत आ नेपाल में पूरा साल जवन छस् मौसम के बांटल जाला ओहमे से वसंत ऋतु लोग के सबसे मनचाहा मौसम हवे। जब फुलन में बहार आ जाला। खेत में सरसो फुला के सोना अस चमके लागेला। खेतन में गहुँ के बाली खिले लागेला। रंग विरंग के तितली मंडराए लागेली सन भंवरा भंवराए लागेला। वसंत ऋतु के स्वागत करेला माघ महिना के पाँचवा दिने एगो बड जश्न मनावल जाला।

उपनिषद के कथा के अनुसार श्रृष्टी के प्रारंभिक काल में भगवान शिव के आज्ञा से भगवान ब्रह्मा जी जीव आ खासतौर पर मनुष्य के योनी के रचना कईलें। लेकीन अपना सृजना से ऊ संतुष्ट ना रहलें। उनका लागत रहे जे कवनो कमी रह गईल बा। जेकरा कारण चारुओर मौनता छाईल रहत रहे। तब ब्रह्मा जी एह समस्या के निवारण खातीर अपना कमण्डल से जल अपना हथेली में ले ले संकल्प स्वरुप ओह जल के छिडक के भगवान विष्णु के स्तुति कईल आरम्भ कईलें।

ब्रम्हा जी के कयील स्तुति सुन के भगवान विष्णु जी तत्काल उहाँ के सम्मुख प्रकट होगईनी। आ उहाँ के समस्या सुन के भगवान विष्णु आदिशक्ती माता दुर्गा के आव्हान कईनी। भगवान विष्णु के द्वारा आव्हान कईला के कारण माता दुर्गा उहाँ तुरंत प्रकट भईली। तब भगवान ब्रम्हा आ भगवान विष्णु उनका से एह संकट के दुर करेला निवेदन कईलख लोग।

ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी के बात सुनला के बाद ओहि क्षण आदिशक्ती दुर्गा माता के शरिर से श्वेत रंग के एगो भारी तेज उत्पन्न भईल जवन एगो दिव्य नारी के रुप में बदल गईल। यी रुप एगो सुंदर चतुर्भुज स्त्री के रहे। दु गो हांथ मे पुस्तक आ माला रहे। आदिशक्ती श्री दुर्गा के शरिर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते हि देवी वीणा के मधुरवाद कईली। जेकरा राग ध्वनी से संसार के समस्त जीव(जन्तु के वाणी प्राप्त होगईल। जलधारा में कोलाहल व्याप्त होगईल। पवन के चलला से सरसराहट होखे लागल। तब देवता लोग शब्द आ रस के संचार करेवाली ओह देवी के वाणी के अधिष्ठात्री देवी ूसरस्वतीू के नाम से पुकारल लोग।

तब आदिशक्ती दुर्गा ब्रम्हा जी से कहली हमरा तेज उत्पन्न देवी सरस्वती राउर पत्नी बनिहें। जईसे लक्ष्मी जी श्री विष्णु के शक्ती, पार्वती जी महादेव के शक्ती हई ओईसही देवी सरस्वती राउर शक्ती बनिहें। एतने कहत देवी दुर्गा अन्तर्धान होगईली। एकरा बाद सब देवता श्रृष्टी के संचालन में संलग्न होगईल लोग। सरस्वती के वागीश्वरी,भगवती,शारदा,वीणावादनी आ वाग्देवी सहित अनेक नाम से पुकारल जाला। देवी सरस्वती विधा आ बुद्धि के प्रदाता हई। संगीत के उत्पती कयीला के कारण ईनका के संगीत के देवी भी कहल जाला। वसंत पञ्चमी के ईनकर प्रकटोत्सव के रुप में भी मनावल जाला। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती के वर्णन करत कहल गईल बा।

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती

धिनामणित्रयवतु!!

अर्थात यी परम चेतना हई। सरस्वती के रुप में यी हमनी के बुद्धि,प्रज्ञा तथा मनोहती के संरक्षिका हई। हमनी में जवन आचार आ मेधा बा ओकर आधार भगवती सरस्वती हई। उनकर समृद्धि आ स्वरुप के वैभव अद्भुत बा। पुराण के अनुसार श्री कृष्ण जी देवी सरस्वती से प्रशन्न हो के उनका के वरदान देहलन जे वसंत पञ्चमी के दिन देवी सरस्वती के आराधना होई। तबे से एह वरदान के फलस्वरूप वसंत पञ्चमी के दिन विधा के देवी सरस्वती जी के पुजा होखे लागल आ अनन्तकाल तक होत रही।

वसंत ऋतु आवते प्रकृती के कण(कण खिल उठेला मानव के साथ(साथ पशु(पंक्षी भी उल्लास से भर जालन सन। हर दिन नयाँ उमंग से सुर्योदय होला आ नयाँ चेतना के प्रदान कर के अगला दिन फेर आवे के आश्वासन दे के चल जाला। अईसे त माघ के पूरा माह ही उत्साह देवे वाला होला। पर वसंत पञ्चमी ९माघ शुक्ल० के पर्व हमनी के जीवन के अनेक तरह से प्रभावित करेला। प्राचीनकाल से एह पर्व के ज्ञान आ कला के देवी माई सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में हीं मनावल जाला। जवन शिक्षाविद लोग शिक्षा से प्रेम करेला लोग ऊ लोग एहदिन माई शारदा के पुजा कर के उनका से अधिक ज्ञानवान होखे के प्रार्थना करेला लोग। कलाकार लोग ला त आउर महत्त्वपूर्ण दिन मानल जाला। जवन महत्त्व सैनिक खातीर आपन शस्त्र के आ विजयादशमी के होला,जवन विद्वान खातीर पुस्तक के होला आ व्यास के खातीर पुर्णिमा के होला,व्यापारी के खातीर तराजु,बाट,बहिखाता आ दिपावली के होला उहे महत्व कलाकार के खातीर वसंत पञ्चमी के होला। चाहे ऊ कवि होखस,लेखक होखस,गायक या वादक होखस,नाटककार या नृत्यकार होखस सब केहु अपना दिन के प्रारम्भ आपन उपकरण के पुजा कर के आ माता सरस्वती के वंदना से ही करेला।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,

वीणा(पुस्तक(धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।

हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्,

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥

एह दिन विवाह, गृह प्रवेश, विद्यारंभ और नया कार्य करल काफी शुभ मानल जाला। वसंत पंचमी एगो अबूझ मुहूर्त ह, जेहमे कवनो भी तरह के शुभ कार्य करे के खातीर मुहूर्त के विचार ना कयील जाला।

पूर्व, उत्तर या उत्तर(पूर्व दिशा ध्यान और शांति के दिशा मानल गईल बा सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव भी एही दिशा में सबसे अधिक होला। अतः ध्यान रहे कि अध्ययन कक्ष एही दिशा में होखे आ पढ़त समय चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा के ओरी होखे।

देवी के वीणावादिनी भी कहल जाला। वीणा के अर्थ खुश रहे के आ खुशी बांटे से बा। जन्म के बाद माता सरस्वती वीणा के तार छेड़ले रहली , त सारा संसार आनंद से चहक उठल रहे, ठीक ओसही , व्यक्ति के अपना मन के सदैव खुश रखे के चाहि, एतना खुश कि रउरा से मिलके दोसर व्यक्ति के मन भी आनंद से भर जाए।

माई सरस्वती के वाहन हंस ह जवन कि सफेद होला। दूध आ पानी के अलग करे के शक्ति हंस में होला।यी प्रतीक हमनी मे सही आ गलत में फर्क करे के सिखावेला। आ सही मार्ग पर चले खातीर प्रेरित करेला।

ज्ञान आ विद्या के देवी मां शारदा के एगो हाथ में पुस्तक रहेला। इनकर पुस्तक लोग के शिक्षा ग्रहण करे खातीर ल प्रेरित करेला। शिक्षा आ ज्ञान से ही सभे के उत्थान संभव बा। एहिसे जीवन में सुख(समृद्धि पावे के खातीर जेतना संभव हो, ओतना ज्ञान अर्जित करें के चाहिँ।

प्रिया मिश्र ूमन्नुू।।।।।✍️✍️

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